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स्वामी विवेकानंद और शिकागो भाषण की प्रेरक कहानी

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                                                              स्वामी विवेकानंद  स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। बचपन से ही वे बहुत बुद्धिमान और जिज्ञासु थे। वे हमेशा ईश्वर को जानने की लालसा रखते थे। वे अक्सर संतों और साधुओं से पूछते थे – “क्या आपने भगवान को देखा है?” उनकी यह तलाश उन्हें श्री रामकृष्ण परमहंस के पास ले गई। परमहंस जी ने न सिर्फ उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान दिया, बल्कि उन्हें मानव सेवा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। शिकागो धर्म संसद की यात्रा 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म महासभा (World Parliament of Religions) का आयोजन हुआ। भारत की ओर से किसी प्रतिनिधि का जाना तय नहीं था, लेकिन विवेकानंद ने ठान लिया कि वे भारत की सनातन संस्कृति और वेदांत का संदेश पूरी दुनिया तक पहुँचाएंगे। उनके पास न पैसे थे, न किसी बड़े संगठन का समर्थन। फिर भी लोगों की मदद से वे अमेरिका पहुँचे। लेकिन वहाँ जाकर ...

शीर्षक: "संघर्ष से उड़ान तक – मिल्खा

 " संघर्ष से उड़ान तक – मिल्खा सिंह --- प्रस्तावना भारत के इतिहास में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो सिर्फ खिलाड़ी नहीं, बल्कि पूरे देश की प्रेरणा बन जाते हैं। मिल्खा सिंह ऐसा ही एक नाम हैं। उनकी कहानी सिर्फ एक दौड़ की नहीं, बल्कि जज़्बे, जुनून और जिंदादिली की कहानी है। यह उस इंसान की दास्तान है जिसने अपनी ज़िंदगी की शुरुआत मौत और बर्बादी से की, लेकिन उसे जीत और शोहरत तक पहुँचाया। Ri --- बचपन – दर्द और तबाही की शुरुआत मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को पंजाब (अब पाकिस्तान में) के एक छोटे से गाँव गोविंदपुरा में हुआ था। वे एक साधारण किसान परिवार से थे। बचपन से ही वे मेहनती और तेज थे, लेकिन उन्हें कभी यह अंदाज़ा नहीं था कि उनकी किस्मत इतनी कठिन मोड़ लेगी। 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तो देश की सीमाएँ खींची गईं और इंसानियत की हदें टूट गईं। लाखों लोगों की तरह मिल्खा सिंह का परिवार भी इस हिंसा का शिकार हुआ। उनके माता-पिता और भाई-बहनों को उनकी आँखों के सामने मार दिया गया। केवल एक बात उन्हें याद रही – उनके पिता का आखिरी शब्द, “भाग मिल्खा भाग!” यह वाक्य उनके जीवन का मंत्र बन गया। -...