स्वामी विवेकानंद और शिकागो भाषण की प्रेरक कहानी

                                                              स्वामी विवेकानंद





 स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। बचपन से ही वे बहुत बुद्धिमान और जिज्ञासु थे। वे हमेशा ईश्वर को जानने की लालसा रखते थे। वे अक्सर संतों और साधुओं से पूछते थे – “क्या आपने भगवान को देखा है?”

उनकी यह तलाश उन्हें श्री रामकृष्ण परमहंस के पास ले गई। परमहंस जी ने न सिर्फ उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान दिया, बल्कि उन्हें मानव सेवा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।


शिकागो धर्म संसद की यात्रा

1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म महासभा (World Parliament of Religions) का आयोजन हुआ। भारत की ओर से किसी प्रतिनिधि का जाना तय नहीं था, लेकिन विवेकानंद ने ठान लिया कि वे भारत की सनातन संस्कृति और वेदांत का संदेश पूरी दुनिया तक पहुँचाएंगे।

उनके पास न पैसे थे, न किसी बड़े संगठन का समर्थन। फिर भी लोगों की मदद से वे अमेरिका पहुँचे। लेकिन वहाँ जाकर पता चला कि उनका भाषण देने का नंबर नहीं है, क्योंकि उन्होंने पहले से रजिस्ट्रेशन नहीं कराया था

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बस, इतना कहना था कि पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। सभी लोग स्तब्ध रह गए – एक भारतीय संन्यासी की आत्मा से निकली आवाज में ऐसा प्रेम, ऐसा अपनापन!

उन्होंने अपने भाषण में भारत की आध्यात्मिकता, सहिष्णुता और सभी धर्मों को एक मानने की भावना को प्रस्तुत किया।



  • भारतीय दर्शन का प्रचार:
    • उन्होंने वेदांत दर्शन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझाया, जिसमें आत्म-ज्ञान, सेवा और त्याग शामिल हैं।
  • भाषण का प्रभाव:
    • उनके भाषण ने पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन और संस्कृति के प्रति आकर्षित किया।
    • उनके विचारों ने धार्मिक सहिष्णुता और विश्व शांति के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।
    • उनके भाषण ने भारत की छवि को एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया।
    • प्रेरणा क्या है?

      • स्व-विश्वास: बिना किसी मदद के, स्वामी जी अकेले अमेरिका पहुँचे और वहां भारत का प्रतिनिधित्व किया।

      • दृढ़ निश्चय: रास्ते में कठिनाइयाँ आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

      • समर्पण: उनका जीवन केवल सेवा और ज्ञान के लिए था, उन्होंने कभी अपने लिए कुछ नहीं चाहा।




    • "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।"

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